spacenews:4 साल से लंबा ना हो एक अभियान, जानिए ऐसा क्यों कह रहे हैं शोधकर्ता

spacenews: 4 साल से लंबा ना हो एक अभियान, जानिए ऐसा क्यों कह रहे हैं शोधकर्ता

जिस तरह दुनिया के कई देशों की स्पेस एजेंसियां मंगल ग्रह (Mars) पर मानव (Humans) भेजने की तैयारी और शोध कर रही हैं, उससे नहीं लगता कि यह संभव नहीं हैं. अरबों खबरों डॉलर मंगल ग्रह पर मानव के रहने लायक हालात बनाने और उससे संबंधित शोध पर खर्च किए जा रहे हैं. मंगल यात्रियों (Mars Travellers) को वहां भेजने के लिए अभी हमारे वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को बहुत से तकनीकी और सुरक्षा चुनौतियों से निपटना है. हाल ही में अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं की एक टीम ने निष्कर्ष निकाला है कि मंगल पर मानव अभियान (Human Missions) तभी ठीक रह सकता है यदि वह चार साल से ज्यादा लंबा ना हो.


विकिरण की बड़ी चुनौतियां
मंगल यात्रा के दौरान  इंसानों के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक वहां पर आने वाले सूर्य, दूर के तारों और गैलेक्सी से आने वाले महीन कणों विकरण का सामना करने की होगी. ऐसे में दो सवाल अहम हैं. क्या यह विकिरण इंसानों के लिए पूरी यात्रा के दौरान खतरा बना रहेगा और क्या अभियान की समयावधि उन्हें इन विकिरणों से बचा सकती है.


पर्याप्त सुरक्षा जरूरी
स्पेस वेदर जर्नल में प्रकाशित नए अध्ययन में अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की टीम ने इस सवालों के जवाब दिया है. इस अध्ययन के मुताबिक इंसान मंगल तक सुरक्षित आ जा सकते हैं, बशर्ते  अंतरिक्ष में पर्याप्त सुरक्षा हो और इस यात्रा का समय चार साल से कम का हो. लेकिन इसके साथ ही मंगल पर अभियान का समय भी अंतर पैदा करेगा.

मंगल पर जाने का बढ़िया समय
वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि पृथ्वी से मंगल की ओर जाने का सबसे अच्छा समय तब होगा जब सौर गतिविधि चरम पर होगी, जिसे सौलर मैक्जिमम कहा जाता है. वैज्ञानिकों की गणना बताती है कि मंगल के लिए भेजे जाने वाले अंतरिक्ष यान के लिए ढाल बनाना संभव है जो उसे सूर्य से आने वाले ऊर्जावान कणों के विकरण से रक्षा कर सकेगी. ऐसा इसलिए है क्योंकि सोलर मैक्जिमम के दौरान सुदूर गैलेक्सी और तारों से आने वाले खतरनाक और ऊर्जावान कण बढ़ी हुई सौर गतिविधि कारण इधर उधर चले जाएंगे.

मंगल यात्रा के दौरान सौर विकरण और सुदूर गैलेक्सी से आने वाले कॉस्मिक विकिरण से सबसे बड़ा खतरा होगा. (तस्वीर: NASA @MAVEN2Mars)
समयावधि की चुनौती
इस अध्ययन में शामिल UCLA  के शोधकर्ताओं में से एक यूरी शैप्रिट्स भी हैं जो उस्ला में भूभौतिकविद शोधकर्ता है. उन्होंने बताया कि मंगल पर मानव अभियान जाने में नौ महीने लग सकते हैं. इस तरह आने जाने में दो साल से कम का समय लगेगा. अंतरिक्ष विकिरण अंतरिक्ष यान के प्रक्षेपण में यान के भार और समय की सीमा ला देता है और साथ ही कुछ तकनीकी मुश्किलें भी पैदा करता है.

चार साल से ज्यादा क्यों नहीं
शोधकर्ताओं का कहना है कि यह अभियान चार साल से ज्यादा लंबा नहीं होना चाहिए क्योंकि लंबी यात्रा अभियान के दौरान एस्ट्रोनॉट्स को खतरनाक रूप से बड़ी तादात में विकरण के सामने उजागर कर देगी, भले ही वह सर्वश्रेष्ठ समय में ही क्यों ना गए हों.  उनके अनुसार प्रमुख खतरा सौरमंडल से बाहर से आने वाले महीन कणों के विकिरण से होगा.

मंगल पर जाने वाले अंतिरक्ष यानों (Space craft) की खोल की परत को पर्याप्त मात्रा में मोटा होने की जरूरत है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: SpaceX)
यान के खोल की परत कितनी मोटी
शोधकर्ताओं ने सौर चक्र के लिए पार्टिकल रेडिएशन के जियोफजिकल मॉडल के साथ मानव यात्रियों और अंतरिक्ष यान पर विकिरण के प्रभाव के मॉडल को मिलाया. इससे पता चला कि अंतरिक्ष यान की मोटी परत का खोल यात्रियों को विकिरण से बचा सकता है. लेकिन अगर वह परत बहुत मोटी हुई तो उससे द्वितीयक विकिरण की मात्रा बहुत बढ़ जाएगी.
शाप्रिट्स का कहना है कि दो प्रमुख हानिकारक विकिरणों, एक सौर ऊर्जावान कणों का विकिरण और दूसरा गैलेक्टिक कॉस्मिक विकिरण, की तीव्रता सौर गतिविधि पर निर्भर करती है. सुदूर गैलेक्सी से आईं कॉस्मिक किरणों की गतिविधि चरम सौर गतिविधि में छह से 12 महीने तक सबसे कम होती है, लेकिन इस दौरान सौर ऊर्जावान कणों का विकिरण सबसे ज्यादा भी होता है.

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